भाजपा के बयानों से स्पष्ट है कि वो आदिवासी आरक्षण के विरोधी है : कांग्रेस

आरएसएस भाजपा के नेता हमेशा आरक्षण खत्म करने की बात करते है

रायपुर। भाजपा के बयानों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि भाजपा के बयानों से स्पष्ट हो गया है कि भाजपा आदिवासी आरक्षण की विरोधी हैं इसीलिए आरक्षण बहाली के लिये किये जा रहे प्रयास का विरोध कर रही। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार सभी वर्गों को उनका कानूनी अधिकार हक देने प्रतिबद्ध है और इसके लिए विधानसभा के विशेष सत्र का आयोजन किया गया है और विधानसभा के विशेष सत्र के लिए आरक्षण संशोधन विधेयक 2022 के मसौदे को पास किया है। आदिवासी वर्ग 32 प्रतिशत आरक्षण की बहाली के लिए बुलाए जा रहे विधानसभा के विशेष सत्र पर भाजपा पहले दिन से सवाल खड़े कर रही है। उसके बाद विधानसभा विशेष सत्र के अधिसूचना पर सवाल खड़ा कर अब विधानसभा सत्र के लिए तैयार की गई मसौदे पर सवाल खड़े कर रही है। भाजपा नहीं चाहती कि प्रदेश के आदिवासी वर्ग की आरक्षण की बहाली हो 2012 में भी रमन सरकार सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के लिए आदिवासी वर्ग के 32 प्रतिशत आरक्षण में बढ़ोतरी किया था लेकिन कानूनी पहलुओं को नजर अंदाज किया जिसके चलते मामला न्यायालय में गया।

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और ईडब्ल्यूएस को उनका अधिकार देने के लिए सभी पहलुओं पर विचार की है। कानूनी पहलू के साथ-साथ संसद को मिले अधिकारों का भी पड़ताल किया गया है और एक मजबूत आरक्षण विधेयक पास करा कर प्रदेश के सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा करेगी और लोकसभा में भी उस विधायक को पास करने भेजा जाएगा। प्रदेश की भाजपा स्पष्ट करें प्रदेश के आदिवासी वर्ग की आरक्षण बहाली के लिए सरकार के द्वारा जो काम किया जा रहा है उसके समर्थन में है कि विरोध में।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि पूर्व रमन सरकार ने आदिवासियों के 32 प्रतिशत आरक्षण के मसले को न्यायालय में मजबूती के साथ नहीं रखा। 32 प्रतिशत आरक्षण का आधार बताने बनाई गई ननकीराम कंवर कमेटी की सिफारिशों को भी नहीं माना। आरएसएस और भाजपा के कई वरिष्ठ नेता सार्वजनिक तौर पर आरक्षण खत्म करने की बात कर चुके हैं। पूर्व रमन सरकार ने भी आरक्षण को खत्म करने की नियत से ही एसटी एवं एससी वर्ग के बीच विवाद उत्पन्न किया, मामला न्यायालय में गया और न्यायालय में भी पक्ष को रमन सरकार ने नहीं रखा जिसका ही परिणाम है कि रमन सरकार के दौरान न्यायालय के समक्ष अपनाई गई ढुल-मूल रवैया के कारण आदिवासी आरक्षण के खिलाफ न्यायालय का फैसला आया।

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