राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव : जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए आदिवासी समुदाय ने किए विभिन्न आंदोलन

पर्यावरणीय नियमो के तहत चलने वाले जनजातीय समाज को अंग्रेजो के कानून अवैध लगे

रायपुर| राजधानी रायपुर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव के तीसरे और अंतिम दिन देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिभागियों ने शोध पत्र का वाचन किया। आज पंचम सत्र में ’’जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी-भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इनका संघर्ष, भूमिका एवं योगदान विषय पर शोधार्थियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किया गया। शोधार्थियों ने अपने शोध पत्रों में जनजातीय समुदायों द्वारा जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए उनके त्याग और बलिदान का विशेष रूप से उल्लेख किया। पर्यावरणीय नियमों के तहत चलने वाले जनजातीय समाज के लिए अंग्रेजो के कानून अवैध लगे और आंदोलन की राह पकड़ लिए। छत्तीसगढ़ का आदिवासी समुदाय अन्याय, शोषण एवं अत्याचार के विरोध में खड़े हुए। ऐसे आंदोलन से जनता के मनोबल में वृद्धि और संघर्ष की प्रेरणा मिलती थी।

आज शोध-पत्र का पठन करते हुए मध्यप्रदेश से आये डॉ मदन सिंह वास्केल ने महू क्षेत्र के आदिवासी क्रांतिकारी टांटिया के बारे में बताया।लोग उसे प्यार से टांटिया मामा कहते थे। मामा अंग्रेज़ो के खजाना को लूटकर गरीबो को बांट देता था। समाज के लिए लड़ने वाले मामा को आज भी क्षेत्र के लोग मानते है। इसी प्रकार जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर आधारभूत व्याख्यान आचार्य रमेन्द्र नाथ मिश्र, अंजलि यादव ने भारत की सांस्कृतिक धरोहर जनजातियों की स्वतंत्रता आन्दोलन में भागीदारी अंजली यादव, गंगाराम कश्यप ने 1910 की भूमकाल क्रांति में बस्तर के आदिवासी क्रांतिकारियों की भूमिका और संघर्ष में चुनौतियों का योगदान, विनोद भगत ने जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी शहीद वीर बुधू भगत,करुणा देवांगन ने स्वतंत्रता आंदोलन में बस्तर के जनजातियों का योगदान एक अवलोकन,डॉ सीमा पाल ने भूमकाल के सूत्रधार लाल कालेंद्र सिंह,डॉ डी एन खूंटे ने दक्षिण बस्तर में 1856 ई. का विद्रोह और घुर्वाराव,ईश्वर लाल ने जनजातीय जागृति में जननायक हीरा सिंहदेव कांगे का योगदान – छत्तीसगढ़ के संदर्भ में (एक अनुशीलन), अजय कुमार चतुर्वेदी ने सरगुजा अंचल के जनजातियों का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान,निर्मल बघेल एवं अन्य ने जंगल सत्याग्रह में शहीद आदिवासी सहित विभिन्न राज्यों के  शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। सत्र के दौरान आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान की संचालक सह आयुक्त श्रीमती शम्मी आबिदी सहित विभाग के अधिकारी भी उपस्थित थे।

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